शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2022

मॉडर्न आर्ट की एक तस्वीर भर है ज़िन्दगी...

बहुत दिन हुए कुछ लिखा नहीं,
वो अक्सर पूछा करती है नया कब लिख रहे हो...

मेरे पास कोई जवाब नहीं होता..
आखिर क्या कहूं,
कितनी कोशिश तो करता हूँ लेकिन गीले कागज पर लिखना आसान नहीं होता...

और वो स्याही वाली कलम तुमने ही तो दी थी न, उसकी लिखावट बहुत जल्द धुंधली पड़ जाती है...

लेकिन वो ये बात नहीं समझती,
और हर रोज यही सवाल पूछती है...

जानती हो उसने कितनी बार ही कहा तुम्हें भूल जाने को,
शायद उसे मेरे चेहरे पर ये उदासी अच्छी नहीं लगती...

लेकिन तुम्हारे आने और लौट जाने के बीच मेरे वजूद का एक टुकड़ा गिर गया था कहीं,
वो कमबख्त उठता ही नहीं बहुत भारी है...

क्या ऐसा मेरे साथ ही होता है कि जो इस पल साथ होता है वो अगले पल नहीं होता...

मैं अब अजीब सी कश्मकश में हूँ, पहले जो शाम काटे नहीं कटती थी...

नुकीले चाकू की तरह मुझे चीरने की कोशिश करती थी,
अब वो फिर से तितली के पंखों की तरह चंचल हो गयी है...

जो शाम तुम्हारे यादों के संग गुज़रती थी उसे अब उसने अपनी खिलखिलाहट से भर दिया है...
पता नहीं कैसे...

जो कुछ भी मैंने कहीं अपनी सबसे भीतरी तह के नीचे छुपा कर रख दिया था,
उसे नीले आकाश की उड़ान भरते देख रहा हूँ...

क्या ये वही शहर है जहाँ चाँद ने उगना छोड़ दिया था,
कल रात देखा तो चाँद ज़मीन पर उतर आया था...

कितनी बार उसने मुझसे पुछा कि मैं जो तुम्हारे बारे में इतना कुछ लिखता हूँ तुम्हें इसकी कद्र भी है या नहीं,
और मैं यही फैसला नहीं कर पाता कि ये मैं तुम्हारे काल्पनिक अस्तित्व के लिए लिखता हूँ या अपनी संतुष्टि के लिए या फिर कलम खुद-ब-खुद अपनी मंजिल ढूँढ लेती है...

इन सभी उधेड़ बुनों के बीच एक और ख्याल है जो मुझे बेचैन कर जाता है,
जबकि उसे पता है मैं उसका नहीं हो सकता, फिर भी हर शाम वो मेरे पास आती है...

ये ज़िन्दगी उस मॉडर्न आर्ट पेंटिंग की तरह होती जा रही है जिसे सिर्फ वही समझ सकता है जिसने उसे बनाया है...

मुझे तलाश है बस अपने उस कलाकार की जिसकी बनाई तस्वीर में उलझा हुआ हूँ,
ये मॉडर्न आर्ट बनाने वाले तस्वीरों पर अपना नाम भी कम ही लिखते हैं...

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें